Jallianwala Bagh Hatyakand History : जलियांवाला बाग नरसंहार का इतिहास | Jallianwala Bagh Massacre in Hindi

भारतीय इतिहास की ओर झांककर देखा जाए तो आपको कई ऐसी घटनाएं मिल जाएँगी जो मानव क्रूरता की सभी हदें पार करती हैं। भारत की स्थिति ब्रिटिश काल में बेहद दयनीय रही है। आज़ादी के लिए भारत का कोना -कोना अपना संघर्ष कर रहा था वही देश में गरीबी, बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर थी। एक और जहाँ गाँधी जी आज़ादी के लिए अहिंसा का मार्ग अपना रहे थे वही ब्रिटिश सरकार भारतीय क्रांतिकारियों पर अपनी क्रूर नीति अपना रही थी।

भारतीय इतिहास में सभी अमानवीय घटनाओं में एक घटना ऐसी है जो आजादी के 75 साल बाद भी सभी के दिलो-दिमाग में जीवित है। साल 1919 भारत के इतिहास में जलियांवाला बाग नरसंहार से जुड़ा हुआ है। जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre in Hindi) भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार था जिसमें कई निहत्थे पुरुष ,महिलाएं और बच्चे मारे गए थे।

जलियांवाला बाग नरसंहार का इतिहास | Jallianwala Bagh Massacre in Hindi, हत्याकांड के दोषी ,रोलेट एक्ट का विरोध ,हत्यकांड में मारे गए लोग
Jallianwala Bagh Massacre in Hindi

Jallianwala Bagh Hatyakand History

भारतीय उपमहाद्वीप में साल 1858 से 1947 तक ब्रिटिश राज था। 1910 से 1936 तक जॉर्ज प्रथम के शासनकाल में भारत में ब्रिटिश सरकार की अधीनता में कई ऐसी घटनाएं हुयी जो आज भी अंग्रेजी हुकूमत की अमानवीयता और निर्दयी व्यवहार का परिचय देती है। 13 april 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ जिसमें अनेक निर्दोष और निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई गयी थी। उस गई से अपने बचाव करने के लिए भीड़ बाग़ में मौजूद कुएँ में कूद पड़ी उस दिन बैशाखी का दिन था। यह घटना हर बैशाखी में उन सभी क्रांतिकारियों और मासूमों के निर्मम हत्या की याद दिलाती है।

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जलियांवाला बाग नरसंहार का इतिहास

13 अप्रैल 1919 रविवार को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग़ में एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था जिसमें पुरुष महिलाएं और बच्चे शामिल थे। यह सभी लोग रोलेट एक्ट 1919 का विरोध करने के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास जलियाँवाला बाग़ में एकत्रित हुए थे। रोलेट एक्ट जिसे काला कानून से भी जाना जाता था यह ब्रिटिशर्स द्वारा भारत में राष्ट्रीय आंदोलनों को कमजोर करने के उद्देश्य से बनाया गया था। रोलेट एक्ट, अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) था। यह एक्ट भारतीयों को उनके अधिकारों से वंचित करता था।

रोलेट एक्ट 1919

26 जनवरी 1919 को भारत में रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी। रोलेट एक्ट को भारतीय लोगों के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने के खिलाफ और अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीतियों का विरोध करने के लिए जनता में तीव्र असंतोष फ़ैल रहा था। इस असंतोष को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार रौलट एक्ट 1919 लेकर आई।

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1916 में न्यायाधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति का कार्य आतंकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावशाली योजना का निर्माण करना था। रौलट कमेटी के दिए गए सुझावों के आधार पर 1918 में केंद्रीय विधान परिषद में दो विधेयकों को पेश किया गया जिसमें से एक विधेयक परिषद के भारतीय सदस्यों के विरोध के बावजूद भी पास किया गया था।

इसी के आधार पर 1919 ई.अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 पारित किया गया गया। इस अधिनियम से सरकार को देश में चल रही राजनीतिक क्रियाकलापों को दबाने का अधिकार मिल गया और 2 साल तक बिना किसी मुक़दमे के राजनितिक कैदियों को हिरासत में रखे जाने की अनुमति दी गयी।

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हत्या कांड

The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919 के खिलाफ पंजाब प्रान्त के Jallianwala Bagh में बड़ी संख्या में लोग दूर दूर से आकर शामिल हुए थे इस दिन शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था। इसी दिन 13 अप्रैल बैसाखी के मौके पर दूर-दूर से लोग Jallianwala Bagh में लगने वाले मेले में शामिल हुए थे। यहाँ पर नेता लोग अपने भाषण दे रहे थे तो कुछ लोग मेले का आनंद ले रहे थे सभी कुछ शांति के साथ चल रहा था। उस दिन हंसराज जी का भाषण सुनने के लिए 20,000 से भी अधिक लोग उपस्थित थे इस भीड़ में सिख समुदाय के लोग अधिक संख्या में मौजूद थे। इस सबकी खबर पाकर उस समय के ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों को साथ लेकर जलियांवाला बाग़ पहुंचा उसके सभी सैनिकों के हाथों में राइफलें थी।

गोलीबारी

डायर ने भाषण को बंद करने का आदेश दिया इस आदेश के बाद से बाग़ में भगदड़ मच गयी.डायर ने बाग़ के सभी दरवाज़ों पर अपने सैनिकों को तैनात किया ताकि कोई भी बाहर न जा सके। रोलेट एक्ट और सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ़्तारी के विरोध में बाग़ में इक्कठा हुयी भीड़ पर महज 10 मिनट में बिना किसी चेतावनी के डायर के आदेश पर ब्रिटिश सैनिकों द्वारा अंधाधुन 1650 राउंड गोलिया चलायी गयी थी। क्या बच्चे और क्या महिलाएं सभी पर गोलियों की बौछार अंग्रेजी सैनिकों द्वारा की गयी अपने बचाव के लिए सभी लोग बाग़ में मौजूद कुंए में कूदते गए लेकिन कुछ ही देर में यह कुआँ लाशों के ठेर से भर गया। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जलियांवाला बाग नरसंहार में 1000 से भी अधिक लोग शहीद हुए थे, 2000 से अधिक लोग घायल हुए।

इस जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद जनरल डायर ने यहाँ तक कहा था की अगर उसके पास हथियार बंद गाड़ियां होती तो वह लोगों को कुचल देता। उसके इस बयांन से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि जलियांवाला बाग नरसंहार के कर्ता धर्ता जनरल डायर कितना क्रूर और निर्दयी इंसान रहा होगा।

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हताहत

इस घटना में 120 शव केवल बाग़ के कुएं से ही मिले थे। घायल लोगों को इलाज के लिए ले जा पाना असंभव था क्योंकि शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था। कई लोग जो घायल थे बाग़ में ही तड़प -तड़प के मारे गए। जलियांवाला बाग़ में मौजूद पुरुष ,महिलाएं, बच्चे ,बुजुर्ग सभी जनरल डायर की गोलियों का शिकार हुए थे। ब्रिटिश राज के अभिलेखों में इस घटना में 200 लोगों के घायल होने ,379 लोगों के शहीद होने की बात कही गयी है।

ब्रिटिश अभिलेख के अनुसार इस नरसंहार में 379 शहीदों में 337 पुरुष, 41 नाबालिक बालक और एक 6 हफ्ते का बच्चा था। एक आंकड़े के अनुसार इस घटना में 1000 से भी अधिक लोगों के शहीद होने और 200 से भी अधिक लोगों के घायल होने की बात कही गयी है। आधिकारिक रूप से जलियांवाला बाग़ हत्याकांड में मारे गए लोगों की संख्या 371 बताई गयी है जबकि असल में इस बाग़ में मारे गए लोगों की संख्या बताये गए आंकड़े से काफी अधिक थी।

हत्याकांड के बाद बयान

भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना के बाद जनरल डायर को अपने कृत्य पर कोई अफ़सोस नहीं था बल्कि वह इस कार्य को अपनी बहादुरी मान रहा था। इस घटना के बाद जनरल रेजीनॉल्ड डायर मुख्यालय जाकर अपने वरिष्ठ अधिकारीयों को टेलीग्राम करता है हुए यह सूचना देता है कि उसके ऊपर बाग़ में मौजूद भारतीय सैनिकों द्वारा हमला किया गया जिससे अपनी रक्षा करते हुए उसे उनपर गोलियां चलनी पड़ी। इसके उत्तर पर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम करते हुए उनके इस कार्य के लिए उन्हें सही ठहराया। इसके बाद ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने अमृतसर के साथ साथ कई अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की माँग वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड से की थी इसके बाद लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड ने उनकी इस मांग को स्वीकार किया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच

डायर के इस क्रूर कार्य की हर जगह निंदा की जाने लगी। Jallianwala Bagh Massacre की जांच के लिए भारत के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एडविड माण्टेगू ने 1919 में साल के अंत में हंटर कमीशन को नियुक्त किया था। इस कमीशन में जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने यह स्वीकारा कि वह बाग़ में मौजूद लोगों पर गोली चलाने के निर्णय को पहले से ही ले चुके थे। इतना ही नहीं डायर लोगों पर चलाने के लिए अपने साथ तोपों को भी लेकर गया था। लेकिन बाग़ में तोप दागने के लिए खुला रास्ता नहीं था जिस कारण वह लोगों पर तोप नहीं दाग सका।

साल 1920 में हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद जनरल डायर को भारत में किसी भी पोस्ट पर न रखने का निर्णय लिया गया। डायर को भारत से ब्रिटेन स्वास्थ्य कारणों को देखते हुए वापिस भेजा गया। हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने डायर के इस हत्याकांड के लिए उसकी निंदा की और एक निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। इसके विपरीत हाउस ऑफ़ लॉर्ड ने जनरल डायर के इस हत्याकाण्ड की निंदा करने के स्थान पर इसकी प्रशंसा की और डायर के लिए प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया गया। लेकिन इस घटना के कारण विश्वभर में डायर की निंदा हो रही थी और इसके दबाव में ब्रिटिश सरकार को बाद में उसका निंदा प्रस्ताव पारित करना पड़ा और साल 1920 में रेजीनॉल्ड डायर को इन सबके चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा। जिसके बाद 1927 में डायर की मृत्यु हो गयी।

बदला

डायर द्वारा जलियावाला बाग़ में किये गए नरसंहार (Massacre) का शिकार उधमसिंह भी हुए थे। उधम सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। Jallianwala Bagh Hatyakand की जांच के लिए कांग्रेस द्वारा मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। जब जनरल डायर द्वारा जलियांवाला बाग़ में नरसंहार किया जा रहा था तो उस समय उधमसिंह वही बाग़ में मौजूद थे जिन्हें डायर की गोली का शिकार होना पड़ा। इस घटना में उधमसिंह बच निकले थे और उन्होंने इस घटना का बदला लेने का निर्णय लिया।

13 मार्च 1940 को उधमसिंह ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए लन्दन के कैक्सटन हॉल में 1919 के समय के ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर को गोली चलकर उनकी हत्या की थी। इसके लिए उधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फांसी पर चढ़ाया गया।

Jallianwala Bagh Massacre in Hindi

भारतीय इतिहास में सबसे बड़े नरसंहार के लिए जाना जाने वाला जलियांवाला बाग़ हत्याकांड हमेशा याद रहेगा। जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की घटना के बाद हंटर कमीशन की रिपोर्ट पेश की गयी थी जिसके बाद जनरल डायर को दोषी ठहराया गया। इस घटना के 8 महीने बाद 27 दिसंबर 1919 को अमृतसर में कोंग्रेश अधिवेशन हुआ था। 26,27 और 28 दिसंबर 1919 को कोंग्रेश अधिवेशन में महात्मा गाँधी और अन्य नेताओं ने लोगों से खिलाफत और सत्याग्रह आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेने की अपील की थी।

Jallianwala Bagh Hatyakand घटना का महत्व

  • अमृतसर का जलियांवाला बाग़ भारत की स्वतंत्रता के लिए निहत्थे और निर्दोष स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का एक महत्वपूर्ण स्मारक है।
  • जलियांवाला बाग़ नरसंहार की इस घटना ने भारत ही नहीं अन्य देशों में जनता के बीच आक्रोश उत्त्पन्न किया।
  • हत्याकांड की घटना के बाद महात्मा गाँधी ने अपना पहला सत्याग्रह अभियान, असहयोग आंदोलन का आयोजन किया।
  • हंटर आयोग द्वारा घटना की जांच की गयी जिसके बाद 1920 में डायर के इस कृत्य की निंदा की गयी और उसे इस्तीफा देना पड़ा।
  • रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे नोबेल पुरस्कार विजेता कवी ने इस घटना की निंदा करते हुए अंग्रेजो द्वारा 1915 में दी गयी नाइटहुड की उपाधि का त्याग किया।

Jallianwala Bagh Hatyakand से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)-

भारतीए इतिहास में 13 अप्रैल 1919 को क्या हुआ था ?

13 अप्रैल 1919 रविवार को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग़ में जनरल डायर द्वारा बड़ी संख्या में बाग़ में मौजूद लोगों पर गोलियां चलायी गयी थी। इस बाग़ में रोलेटैत का विरोध करने वालों की सभा हो रही थी जिसकी सूचना पाकर डायर ने बिना किसी कारण भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश अपने सैनिकों को दिया था।

भारत की किस स्थान पर Jallianwala Bagh Hatyakand घटित हुआ ?

भारत के अमृतसर में जलियांवाला बाग़ में Jallianwala Bagh Hatyakand की घटना हुई थी।

लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर की हत्या किसने की थी ?

लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर वही व्यक्ति था जिसने रेजीनॉल्ड डायर के द्वारा 13 अप्रैल 1919 को किये गए नरसंहार को सही ठहराया था। 13 अप्रैल 1919 को घटित जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के समय बाग़ में उधम सिंह भी उपस्थित थे जिन्हें गोली लगी थी। इस घटना का बदला लेने के लिए उधम सिंह ने लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर की गोली मरकर हत्या की थी।

जलियांवाला बाग में किसके विरोध में सभा का आयोजन किया गया था?

रोलेट एक्ट के विरोध और 9 अप्रैल, 1919 को राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलु और डॉ. सत्यपाल की गिरफ़्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सभा का आयोजन किया गया।

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