भारत में 2000 से भी अधिक त्यौहारों को विभिन्न धर्मों द्वारा बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में हर साल होली, दिवाली, मकर संक्रांति, लोहड़ी, महाशिवरात्रि जैसे त्योहारों को मनाया जाता है। होली का त्यौहार (Holi Festival) हिन्दू धर्म में बड़ा महत्त्व रखता है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होली को रंगों के त्यौहार के नाम से भी कहा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार होली उत्सव फाल्गुन माह की पूर्णिमा की संध्या से शुरू होता है।
साल 2024 में इस बार होली कब है और होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है Holi 2024 Date क्या है ? इन सबके बारे में आप जानेंगें। Holi Kyu Manai Jati Hain और होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 2024 में कब है ,पूजा विधि होली का इतिहास और होली की अनसुनी गाथा नीचे आप आर्टिकल में जान सकेंगे।
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Holi Kyu Manai Jati Hain
किसी भी त्यौहार को मनाये जाने के पीछे ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण होते हैं। होली क्यों मानते हैं ?इसके पीछे वैसे तो कई कहानियां प्रचलित हैं लेकिन होलिका और प्रह्लाद की कहानी का विशेष महत्व है। होलिका दहन होली से एक दिन पूर्व किया जाता है। इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। कई इतिहासकार यह मानते हैं की आर्यों में इस त्यौहार का काफी प्रचलन था। होली को विशेष रूप से उत्तर और पूर्वी भारत में मनाया जाता है।
होली का वर्णन अनेक प्रकार की पुरातन धार्मिक पुस्तकों जैसे जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र आदि में मिलता है। इतना ही नहीं भविष्य पुराण और नारद पुराण की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथो में इस उत्सव का उल्लेख किया गया है। होली के पर्व को मनाये जाने के पीछे अनेक कहानिया जुडी हुई हैं लेकिन उन सभी में से प्रह्लाद और होलिका की कथा काफी प्रसिद्ध है।
Key Highlights of Holi Festival
आर्टिकल का नाम | होली का त्यौहार |
त्यौहार मनाया जाता है | भारत में हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा |
होली के अन्य नाम | फगुआ, धुलेंडी, छारंडी (राजस्थान में) दोल |
त्यौहार के अनुयायी | हिन्दू,भारतीय,भारतीय प्रवासी, नेपाली |
अनुष्ठान (Celebration) | होलिका दहन, रंग खेलना और रंगों से खेलना |
तिथि | फाल्गुन पूर्णिमा |
होली के समान पर्व | याओसांग (मणिपुर में होली के सामना मनाया जाता है), होला मोहल्ला (आनंदपुर साहिब में होली के अगले दिन लगने वाला मेला ) |
Holi 2024 में कब है ? (holi 2024 date)
सोमवार 25 मार्च 2024 को भारत में होली मनाई जाएगी। जिस दिन होलिका दहन किया जाता है उस दिन छोटी होली /या सुखी होली के रूप में होली पर्व को मनाया जाता है। इसके अगले दिन बड़ी होली मनाई जाती है इसे गीली होली भी कहा जाता है। इस साल होली 25 मार्च 2024 को पड़ रही है। वहीँ होलिका दहन जिसे होली से एक दिन पूर्व मनाया जाता है इस साल 2024 में होलिका दहन का पर्व 25 मार्च को मनाया जायेगा।
Holika dahan 2024 date and time
होली में होलिका दहन एक विशेष प्रक्रिया है। होलिका दहन, होलिका दहन की विधि ,समय ,फाल्गुन पूर्णिमा तिथि आदि को नीचे सारिणी में दिया गया है –
तारीख: 24 मार्च, 2024 (रविवार)
दिन: पूर्णिमा
समय: शाम 07:19 बजे से रात 09:38 बजे तक
मुहूर्त: रात 11:13 बजे से रात 12:27 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 07:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:19 बजे तक
रवि योग: सुबह 06:20 बजे से सुबह 07:34 बजे तक
होलिका दहन 2024 पूजा विधि (Holika Dahan 2024 Puja vidhi)
भारतीय समाज में त्योहारों में पूजा विधि का एक विशेष महत्त्व है। होलिका दहन बुराई के अंत का प्रतीक है। होलिका दहन की पूजा विधि इस प्रकार है –
- सबसे पहले तो होलिका दहन वाले दिन लोग होलिका जलाने के लिए लकड़ियों को जमा करते हैं।
- होलिका जलाने के लिए एक स्थान निश्चित किया जाता है।
- होलिका के लिए तैयार की गयी लकड़ी को मौली या सफ़ेद धागे से आपको 3 या 7 बार लपेटना है।
- अब आपको लकड़ी पर जल, कुमकुम और फूल को चढ़ाना है और इसके बाद पूजा करनी है।
- पूजा पूरी होने के बाद सायं के समय होलिका का जलाया जाता है।
- भगवान से प्रार्थना की जाती है।
- सभी लोग परिक्रमा करते हैं और भगवान विष्णु जी की भक्ति करते हैं।
- रंगों को हवा में उदय जाता है और इसके बाद होली के गीत लगाए जाते हैं।
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होली का त्यौहार (Holi Festival) क्यों मनाया जाता है ?
हिन्दू धर्म में होली का त्यौहार का अपना विशेष महत्त्व रखता है। भारतीय समाज में हर त्यौहार की अपनी विशेषता रही है। त्यौहारों को मनाये जाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि होली को मनाने की परम्परा प्रह्लाद और होलिका के कथा से जुडी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार प्रह्लाद जोकि भगवान विष्णु का परम भक्त था उसे श्री हरी नारायण ने उसके पिता हिरण्यकश्यप के बुरे इरादों से बचाया था।
हिरणकश्यप और प्रह्लाद की कथा
हिरणकश्यप एक असुर था जिसके बालक का नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद भगवान हरी विष्णु जी का अनन्य भक्त था। हिरणकश्यप स्वयं को भगवान कहा करता था और सभी को अपनी पूजा करने और भक्ति के लिए आदेश देता था। प्रह्लाद इसके विपरीत भगवान हरी का उपासक था और उनकी भक्ति में दिन-रात लगा रहता था। लेकिन उसके पिता को उसकी यह भक्ति पसंद नहीं थी वह अपने पुत्र प्रह्लाद को अपनी भक्ति करने का आदेश देता है। प्रह्लाद का ऐसा न करने पर पिता हिरणकश्यप ने उसे मार डालने की नीति बनाई।
प्रह्लाद को हिरणकश्यप द्वारा कई प्रकार के दंड दिए गए पर प्रह्लाद ने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी। अंत में हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को आग में भष्म न होने का वरदान प्राप्त था। हिरणकश्यप के आदेश से उसकी बहन होलिका ने प्रह्लाद को भस्म करने के लिए प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर स्वयं आग में बैठ गयी। इसका परिणाम यह हुआ की होलिका स्वयं तो जलकर राख हो गयी लेकिन प्रह्लाद भगवान् हरी विष्णु की भक्ति में मग्न था और सही सलामत आग से बच गया।
अंत में हिरणकश्यप का अंत स्वयं भगवान विष्णु द्वारा नरसिह अवतार में किया गया। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होली का त्यौहार प्रह्लाद की याद में मनाया जाता है। होलिका के अंत को हिन्दू धर्म में होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है।
जाने होली की अनसुनी गाथा
होली को मनाये जाने के पीछे हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त होली का त्यौहार कामदेव के पुनर्जन्म , राधा कृष्ण रास लीला, राक्षसी ढूंढी से भी जुड़ा हुआ है। एक कथा कामदेव से जुडी है।
भगवान शिव और माता पार्वती की कथा
शिव पुराण के अनुसार एक बार की बात है जब माता पार्वती को भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा हुई थी। भगवान् शंकर अपनी तपस्या में लीन थे। माता पार्वती की सहायता के लिए इंद्र ने कामदेव को भगवान शंकर पर प्रेम बाण चलाने के लिए आदेश दिया। कामदेव ने भगवान शिव पर अपना प्रेम बाण चलाया जिससे तपस्या में बैठे भोले शंकर की तपस्या भंग हो गयी।
क्रोधवश भगवान शंकर की तीसरी आंख खुल गयी जिसकी ज्वाला से कामदेव भस्म हो गए। लेकिन बाद में भगवान् शंकर ने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। भगवान् शंकर की तीसरी आंख से निकलने वाली ज्वाला ने कामदेव को भस्म किया। इस प्रकार होली को आग में वासनात्मक आकर्षण को जलाकर सच्चे प्रेम की जीत के तौर पर मनाया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण और पूतना की कथा
वैसे तो आप सभी हिरणकश्यप और प्रह्लाद से जुडी कहानी जानते ही हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त भी एक और कथा है जोकि भगवान श्रीकृष्ण और पूतना से जुडी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के मां श्री कंस द्वारा श्री कृष्ण के अंत के लिए राक्षसी पूतना को भेजा गया था। पूतना जोकि एक मायावी राक्षसी थी उसके द्वारा एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया गया।
भगवान कृष्ण को पूतना ने अपना जहरीला दूध पिलाकर मारना चाहा था लेकिन श्री कृष सब जानते थे बाल कृष्ण ने दूध पीते -पीते ही उस राक्षसी के प्राणों को हर लिया। इस घटना के बाद राक्षसी तड़पड़ाने लगी और अपने राक्षसी रूप में आ गयी। भगवान कृष्ण ने राक्षसी का अंत कर लिया। इसके बाद से गवालों ने राक्षसी का पुतला बनाकर जला डाला। इसी दिन फाल्गुन पूर्णिमा भी थी। इसके बाद से ही ख़ुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
Different names of holi (होली के अलग अलग नाम)
भारत में होली को अलग -अलग नामों से भी जाना जाता है। इस पर्व /त्यौहार को डोल पूर्णिमा ,धुलंडी ,धुलेटी ,रंगवाली होली ,मंजल कुली, उकुली, जजिरि, फगवा,शिगमो नाम से भी जाना जाता है। मुग़ल शासक शाहजहां ने होली को ईद-ए -गुलाबी के नाम से सम्बोथित किया था। इसके बाद इसे होली के नाम से जाना जाने लगा।
Holi Festival से सम्बंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)-
2024 में होली (Holi Festival) कब है ?
इस साल होली 25 मार्च सोमवार को है।
होलिका/होली कौन थी ?
होलिका हिरणकश्यप एवं हिरण्याक्ष नाम के राक्षसों की बहन थी और ऋषि कश्यप और दिति की पुत्री थी।
holika के पति और पुत्र कौन थे ?
होलिका के पति वप्रीचिति थे। होलिका के पुत्र का नाम स्वरभानु था।
होलिका दहन 2024 कब है ?
Holika dahan रविवार 24 मार्च को है।
होली को अन्य किस नाम से जानते हैं ?
holi को डोल पूर्णिमा, धुलंडी, धुलेटी, रंगवाली, उकुली जजिरि, फगवा, शिगमो आदि नामों से भी जाना जाता है।
कौन-सी होली सबसे अधिक प्रसिद्ध है ?
बरसाने की लठमार होली काफी प्रसिद्ध है।
दोल जात्रा क्या है ?
बंगाल में होली से एक दिन पूर्व dol जात्रा को चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
होली के रंग कैसे बनाये जाते हैं ?
Holi Festival color को टेसू के फूलों से मनाया जाता है। यह एक प्राकृतिक रंग है। लेकिन आजकल रंगों में कई प्रकार के केमिकल मिलाये जा रहे हैं।