इस बार शिवरात्रि 18 फरवरी 2023 को मनाई जाएगी। शिवरात्रि को लेकर भी लोगों के मन में कई सवाल है जैसे इस बार महाशिवरात्रि कब होगी ? आपको बता दें की शिवरात्रि(Shivratri) इस बार 18 फरवरी 2023 शनिवार को पड़ रही है। भगवान शिव की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए शिव रात्रि का अपना एक ख़ास महत्त्व है। क्या आप जानते हैं शिव रात्रि (Shivratri) क्यों मनाई जाती हैं? और महाशिवरात्रि मानाने के पीछे वैज्ञानिक, आध्यात्मिक महत्व क्या है ? यदि नहीं तो कोई बात नहीं आज का लेख आपके लिए ही है।
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Shivratri 2023 कुछ ही दिनों में आने वाली है और लोग अभी से भगवान् शिव की आराधना के लिए तैयारी में जुटे हुए हैं। शिवरात्रि मनाये जाने के पीछे क्या कहानी है और शिवरात्रि कब मनाई जाती है आज हम आपको इसकी जानकारी देने जा रहे हैं। पाठकों से निवेदन है वह आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़ें ताकि वह भी वार्षिक उत्सव के रूप में mahashivratri मनाये जाने के पीछे का कारण समझ सकें।
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महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?
देश में बड़ी संख्या में हिन्दू समुदाय द्वारा महाशिवरात्रि का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि माने जाने के पीछे कई मत है। हिन्दू पुराणों और धर्म ग्रंथों में इसके बारे में व्याख्या की गयी है। शिवरात्रि मात्र एक त्यौहार नहीं बल्कि यह ऐसा दिन है जब आपके मन मस्तिष्क में ऊर्जा का नया स्वरुप उत्त्पन्न होता है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा -अर्चना की जाती है। इस दिन का इसलिए भी ख़ास महत्त्व है क्यूंकि इसी दिन भगवान शिव अपने भक्तों द्वारा की जाने वाली पूजा से अति प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं।
आध्यात्मिक महत्व के तौर पर महाशिवरात्रि पर्व मनाये जाने के पीछे अनेक मत हैं। लेकिन शिव पुराण में और अन्य लेखों में शिवरात्रि (Shivratri) को मनाने का विशेष महत्व बताया गया है। shiv puraan के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने सृष्टि को रक्षा हेतु हलहाल विष का पान किया था और पूरी सृष्टि की रक्षा इस विष से से की थी। भगवान् शंकर द्वारा इसी विष के मध्य में सुंदर नृत्य किया गया और सभी देवताओं ,दानवों और भक्तों ने शिव भगवान् के इस नृत्य को अधिक महत्त्व दिया। हर साल इसी दिन को भगवान् शिव की पूजा -अर्चना की जाती है। जिसे शिव रात्रि के नाम से जाना जाता है।
Shivratri मनाये जाने के पीछे की कथा
एक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न जगहों में प्रकट हुए थे। यह सभी शिवलिंग अलग अलग 64 स्थानों में स्वयं प्रकट हुए थे। इन 64 लिंगों में से 12 लिंगों की पहचान हुयी जिन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जानते हैं। mahashivratri के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में डीप जलाये जाते हैं और पूरी रात जागरण किया जाता है।
कई शिवभक्त इसी दिन को भगवान् शिव के विवाह का उत्साव मानते हैं। मानयता अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवन शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। शिवरात्रि के दिन ही भगवान् शिव ने अपने वैराग्य रूप का त्याग किया और गृहस्थ जीवन को अपनाया था। ऐसा माना जाता है की शिवरात्रि के 15 दिन बाद होली का त्यौहार मनाये जाने के पीछे यह कारण है।
महाशिवरात्रि मानाने के पीछे वैज्ञानिक महत्व | Scientific importance of celebrating Shivratri
हिन्दू सनातन धर्म में हर पर्व और त्यौहार का अपना एक विशेष महत्त्व है। हर पर्व का मानाने के पीछे आध्यात्मिक महत्त्व के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी होता है। यदि हम महाशिवरात्रि मनाये जाने के पीछे के वैज्ञानिक महत्त्व को देखें तो माना जाता है की इसी रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस तरह से अवस्थित होता है की मनुष्य ,जीव जंतु सभी के भीतर की ऊर्जा का विस्तार प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर अग्रसर होता है।
यह ऐसा दिन है जब मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति और ऊर्जा पाने में प्राकृतिक रूप से सहायता मिलती है। शिवरात्रि मात्र एक पर्व नहीं है यह विचार करने वाले विभिन्न स्त्रोतों को एक मापदंड पर लेकर शुन्य कर देने और विशाल ऊर्जा को प्राप्त करने का दिन है। इस दिन रात्रि के समय भगवान शिव की पूजा आराधना करते समय व्यक्ति को ऊर्जा कुंज के साथ सीधे बैठना पड़ता है। जिससे व्यक्ति की रीड की हड्डी सीधी होती है और उसे मजबूती मिलती है इतना ही नहीं मनुष्य को इस दिन एक सुपर नेचर पावर की अनुभूति होती है।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
यह ऐसा दिन है जब हर तरफ लोग भगवान्दि शिव की भक्ति में पूरी तरह से रम जाते हैं। भक्त शिवरात्रि के पर्व परसुबह से लेकर रात्रि तक भगवान भोले शंकर की पूजा -अर्चना करते हैं। और ध्यान क्रिया करते हैं। भगवान् शिव स्वयं ऊर्जा के स्त्रोत हैं इस दिन भक्तों पर भोले शंकर अपना आशीर्वाद बनाये रखते हैं। महाशिवरात्रि को बसंत ऋतु के फाल्गुनी मास की चतुर्दशी को मनाया जाता है। अमावस्या से 4 दिन पूर्व महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।
सभी भक्तों में इस दिन अध्यात्म रुचि का विस्तार देखने को मिलता है। अध्यात्म को जानना और अध्यात्म को पढ़ना तथा आध्यात्मिक के बारे में चर्चा करने से व्यक्ति के आध्यात्मिक चेतन का विकास होता है मान और दिमाग में नयी ऊर्जा का संचार होता है।
शिव रात्रि से सम्बंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)-
shivratri 2023 इस वर्ष 18 फरवरी शनिवार को पड़ रही है।
हर साल बसंत ऋतु के फाल्गुनी मास की चतुर्दशी को शिवरात्रि मनाई जाती है। मन जाता है इसी दिन भगवान शिव ने हलाहल विष से सभी देव दानवों और सृष्टि की रक्षा की थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान्कि शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
त्रिभुवन पति भगवान् शंकर को प्रसन्न करने के लिए शिव गणों द्वारा शिवरात्रि का पहला उत्सव् मनाया गया था।