हमारी हिंदी भाषा जो की देश में बड़े स्तर पर प्रयोग में लायी जाती है उसकी अपनी एक विशेष लिपि है। हर भाषा की अपनी एक लिपि होती है।
भारत जैसे देश में हिंदी भाषा को अधिकतर लोगों द्वारा बोला जाता है। एक दूसरे से संवाद के लिए हिंदी भाषा का ही प्रयोग होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं हिंदी भाषा की लिपि क्या है?
यदि नहीं जानते तो कोई बात नहीं आज हम आपको हिंदी भाषा की लिपि क्या है इसके बारे में जानकारी देंगे साथ ही लिपि क्या होती है ?और इसका क्या महत्त्व है सभी के बारे में आप जान सकेंगे।
भारत में विभिन्न प्रकार की भाषाएँ बोली जाती है, लेकिन कुछ भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें आधिकारिक भाषाओं का दर्जा प्राप्त है।
हिंदी भाषा की लिपि का इतिहास सभी की जानकारी आज आप इस आर्टिकल के माध्यम से ले सकेंगे। तो चलिए जानते हैं हिंदी भाषा की लिपि से जुडी सभी महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में।
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लिपि क्या है ?
सबसे पहले तो आपको यह जान लेना आवश्यक है की किसी भी भाषा की लिपि क्या होती है। लिपि या लिखावट जिसे अंग्रेजी में script कहा जाता है। लिपि किसी भी भाषा को कैसे लिखा जाना चाहिए उसे लिखने का ढंग होता है।
किसी भी भाषा को बोलते समय ध्वनियों का काफी महत्त्व रहता है। इन ध्वनियों को लिखने के लिए भाषा में जिन चिन्हों (signs) को प्रयोग किया जाता है यही चिन्ह उस भाषा की लिपि कहलाती है।
दुनिया भर में 3 प्रकार की ही मूल लिपियाँ हैं -चित्र लिपि जिसे कोरिया ,चीन ,जापान में प्रयोग किया जाता है।
ब्राह्मी लिपि से देवनागरी और दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में प्रयोग लायी जाने वाली लिपियों का जन्म हुआ है। फोनेशियन से व्युत्पन लिपियाँ यूरोप ,मध्य एशिया ,अफ्रीका में प्रयोग में लायी जाने वाली लिपियाँ।
लिपि के प्रकार
ब्राम्ही लिपि, चित्र लिपि, फोनेशियन अलग अलग क्षेत्रों में विकसित हुयी। लिपि स्वर और व्यंजन के आधार पर निम्नलिखित प्रकार की होती हैं।
- अल्फबेटिक (Alphabetic) अक्षर लिपि
- अल्फासिलेबिक Alpha Syllabic लिपि
- चित्र लिपि (picture script )
अल्फबेटिक (Alphabetic) अक्षर लिपि -इस लिपि में स्वर अपने पूरे अक्षर का रूप लेते हुए व्यंजन के बाद आते हैं। इसके अंतर्गत नीचे दी गयी लिपियाँ आती हैं।
- लेटिन लिपि (रोमन लिपि)
- यूनानी लिपि
- अरबी लिपि
- इब्रानी लिपि
- सिरिलिक लिपि
अल्फासिलैबिक (Alpha syllabic) लिपियाँ – इसके हर एक यूनिट में एक या इससे अधिक व्यंजन शामिल होते हैं। और इन पर स्वर की मात्रा का चिन्ह प्रयोग किया जाता है। लेकिन व्यंजन न होने पर स्वर के चिन्ह को प्रयोग में लाया जाता है। इसके अंतर्गत यह लिपियाँ आती हैं –
- शारदा लिपि
- देवनागरी लिपि
- मध्य भारतीय लिपि
- द्रविड़ लिपि
- मंगोलियन लिपि
चित्र लिपि (picture script )– इसमें चित्रों का प्रयोग किया जाता है। चित्र लिपियाँ इस प्रकार हैं –
- प्राचीन मिस्त्री लिपि
- चीनी लिपि
- कांजी लिपि
हिंदी भाषा की लिपि क्या हैं ?
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। अल्फासिलैबिक (Alpha syllabic) लिपियाँ में देवनागरी लिपि आती है और हिंदी भाषा इसी का अंश है। हिंदी ही नहीं बल्कि उर्दू ,संस्कृत ,मराठी ,नेपाली भाषाओं की लिपि भी देवनागरी है।
प्राचीन काल में जब भाषाओं का विकास नहीं हुआ था तो कई सालों तक लिपि के लिए चित्र लिपि को प्रयोग किया जाता था। समय के साथ साथ कई लिपियों को प्रयोग में लाया जाने लगा था।
भारत में ब्राम्ही और खरोष्ठी का उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता है।
देवनागरी लिपि ब्राह्मी लिपि से ही उपजी है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है और इस लिपि को बाएं से दाहिनी ओर लिखा जाता है। हिंदी के आलावा संस्कृत ,पालि, मराठी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली आदि देवनागरी लिपि की भाषाएँ हैं।
देवनागरी लिपि का विकास
ब्राह्मी लिपि भारत की सभी लिपियों की जननी है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी ब्राह्मी लिपि से ही निकली है। समय के साथ साथ ब्राह्मी लिपि को भी कई भागों में बांटा गया।
गुप्त काल के शुरुआत में ब्राह्मी लिपि को 2 भागों में बांटा गया जो इस प्रकार थी उत्तरी ब्राह्मी और कुटिल लिपिकुटिल ब्राह्मी।
उत्तरी ब्राह्मी से 2 लिपियों का जन्म हुआ -पहली गुप्त लिपि और दूसरी सिद्ध मातृका लिपि। कुटिल लिपिकुटिल लिपि को 4 भागों में बांटा गया है -नागरी लिपि ,शारदा लिपि ,Western ब्राह्मी ,देवनागरी लिपि का नामकरण। देवनागरी लिपि एक ध्वन्यात्मक लिपि है।
भारत की कई लिपियाँ देवनागरी लिपि से काफी हद तक मिलती-जुलती प्रतीत होती हैं उदहारण के लिए बांग्ला ,गुजरती और गुरुमुखी आदि। एक मत के अनुसार काशी के देवनगर में प्रचलित होने के कारण देवनागरी लिपि का नाम देवनागरी पड़ा।
1000 ईस्वी से भी पूर्व से देवनागरी लिपि का उपयोग प्रारम्भ हो चुका था। डॉक्टर द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार देवनागरी लिपि का प्रयोग गुजरात के नरेश जयभट्ट के शिलालेख से प्राप्त हुआ माना जाता है।
उत्तरी ब्राह्मी से नागरी लिपि का विकास –
- उत्तरी ब्राह्मी (350 ई तक )
- गुप्त लिपि (4-5 वीं सदी )
- सिद्ध मातृका लिपि (6 वीं सदी )
- कुटिल लिपि -कुटिल लिपि को दो भागों में बांटा गया है -‘
- नागरी
- शारदा (4 भागों में -गुरुमुखी ,कश्मीरी ,लहदा ,टाकरी
देवनागरी लिपि भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में प्रचलित है। भारत के मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश ,महाराष्ट्र ,गुजरात आदि राज्यों में मिले शिलालेखों ,ग्रंथों ,ताम्रपत्रों में देवनागरी लिपि को ही प्रयोग में लाया गया है।
देवनागरी लिपि का प्रयोग करने वाली भाषाएँ
- अवधि
- कनौजी
- कोंकणी
- कश्मीरी
- कांगड़ी
- कोया
- किन्नौरी
- कुड़माली
- कुमाउनी
- खानदेशी
- खालिड़
- खड़िया
- गढ़वाली
- गुर्जरी
- गुरुड़
- गोण्डी
- चाम्बियाली
- चमलिड़
- चुराही
- चेपाड़ भाषा
- छत्तीसगढ़ी
- चिन्ताङ
- जिरेल
- जुमली
- तिलुड़
- वारली
- वासवी
- वागड़ी
- वाम्बुले
- हिंदी
- संस्कृत
- मराठी
- नेपाली
Hindi भाषा लिपि देवनागरी का इतिहास
देवनागरी को ब्राम्ही लिपि परिवार का हिस्सा माना जाता है। नागरी लिपि को देवनागरी लिपि से काफी निकट माना जाता है। नागरी लिपि देवनागरी लिपि का पूर्वरूप भी है। 8 वीं सदी में चित्रकूट द्वारा और इसके बाद 9 वीं सदी में बडौदा के ध्रुवराज द्वारा देवनागरी लिपि का प्रयोग किया गया था।
785 में राष्ट्रकूट नरेश दन्तिदुर्ग के सामगढ ताम्रपत्र पर देवनागरी लिपि अंकित है। 11 वीं सदी में चोलराजा राजेंद्र के सिक्कों पर भी देवनागरी लिपि मिलती है। इसके आलावा प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल के दानपत्र पर भी देवनागरी लिपि अंकित है।
मेहमूद गजनी के चांदी के सिक्कों पर भी देवनागरी लिपि में संस्कृत का प्रयोग हुआ है। इतना ही नहीं मुहम्मद विनसाम (1112 से 1205 ) के सिक्कों पर भी देवनागरी लिपि का प्रयोग हुआ है।
सानुद्दीन फिरोजशाह प्रथम, बहराम शाह, अलाऊद्दीन मसूदशाह,जलालुद्दीन रज़िया, नासिरुद्दीन महमूद, मुईजुद्दीन, गयासुद्दीन बलवन, मुईजुद्दीन कैकूबाद आदि के द्वारा भी अपने सिक्कों पर देवनागरी अक्षरों का प्रयोग किया गया है।
देवनागरी लिपि की विशेषता
- पुराने समय में प्रयोग की जाने वाली देवनागरी आज के समय की देवनागरी से अलग है। आधुनिक देवनागरी लिपि में 52 वर्ण है।
- हर एक ध्वनि के लिए सांकेतिक चित्रों का प्रयोग किया जाता है।
- स्वर्ग और व्यंजनों का क्रम विन्यास उच्चारण के स्थान को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
- मात्राओं की संख्या के आधार पर छंदों को बांटा गया है।
- लिपि के चिन्हों और उनकी ध्वनि में समानता।
- देवनागरी में स्माल लेटर और कैपिटल लेटर की व्यवस्था नहीं है।
- एक वर्ण के ऊपर कई मात्राओं का प्रयोग होता है जिससे ध्वनि में परिवर्तन होता है।
- बाएं से दाहिनी और लिखी जाती है।
- शिरोरेखा ,संयुक्त अक्षरों का प्रयोग।
देवनागरी का भाषाओँ पर असर
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है और देवनागरी लिपि पर कई भाषाओं का प्रभाव पड़ा है –
- रोमन– रोमन लिपि से प्रभावित होकर देवनागरी लिपि में बहुत से चिन्हों में बदलाव किये गए। जैसे प्रश्नवाचक चिन्ह, पूर्ण विराम आदि।
- फारसी– फारसी भाषा से प्रभावित होकर देवनागरी में बहुत सी ध्वनियां जैसे कि क़, ख़, आदि को भी जोड़ा गया था।
- बांग्ला– देवनागरी लिपि में गोल शब्द को लिखना बांग्ला लिपि से ही प्रभावित होकर ही शुरू किया गया था।
devnagri lipi (देवनागरी लिपि का मानक स्वरूप)
मानकीकृत देवनागरी वर्णमाला – स्वर- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ अनुस्वार- अं और विसर्ग- अः
व्यंजन-
- क ख ग घ ङ (कंठ्य )
- च छ ज झ (तालव्य)
- ट ठ ड ढ ण (मूर्धन्य)
- त थ द ध म (दन्त्य)
- प फ ब भ म (ओष्ठ्य)
- य र ल व (अन्तस्थ)
- श ष स ह (ऊष्म)
- क्ष, त्र ज्ञ, श्र (संयुक्त व्यंजन)
- ङ, ढ़ (द्विगुण व्यंजन)
- देवनागरी लिपि में कुल वर्णों की संख्या – 52
- देवनागरी लिपि में व्यंजनों की कुल संख्या -39 (व्यंजनो में से 4 संयुक्त व्यंजन और द्विगुण व्यंजन हैं।)
- देवनागरी लिपि में स्वरों की संख्या -11
- अनुस्वार, विसर्ग को ’अयोगवाह’ कहा जाता है, इनकी संख्या 2 है।
- 11 स्वर + 2 अयोगवाह + 39 व्यंजन = 52 वर्ण
Hindi bhasha ki lipi से जुड़े सवाल (FAQs)-
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है।
अवधि ,कनौजी ,कोंकणी,कश्मीरी ,कांगड़ी ,कोया,किन्नौरी ,कुड़माली ,कुमाउनी, खानदेशी ,खालिड़, खड़िया ,गढ़वाली आदि देवनागरी लिपि का प्रयोग करते हैं।
संस्कृत भाषा की लिपि ब्राह्मी लिपि है।
देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है।
धम्म लिपि भारत की सबसे प्राचीन लिपियों में से एक है।
भारत की सबसे प्राचीन लिपि ब्राह्मी लिपि है।
10000 से 4000 ई. पूर्व के मध्य से लिपि का विकास हुआ था।
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी पर कई भाषाओं का असर हुआ है। रोमन ,फारसी और बांग्ला का देवनागरी लिपि पर अधिक प्रभाव पड़ा है।