13 फरवरी 2024 को, किसानों ने एक बार फिर से ‘दिल्ली चलो’ का नारा लगाया। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पहले भी हो चुका है, जैसे 2 साल पहले 26 नवंबर 2020 को हुआ था। उस समय, किसानों ने कुछ नए कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, जिन्हें बाद में नवंबर 2021 में सरकार ने वापस ले लिया।
लेकिन इस बार किसान कुछ और मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिले, लेकिन वो MSP जो सरकार दे रही है, वो नहीं। किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP चाहते हैं।
तो, स्वामीनाथन आयोग क्या है? यह एक आयोग था जिसे MS स्वामीनाथन ने लीड किया था, और इसने किसानों के लिए बेहतर MSP का एक फार्मूला सुझाया था। इस फार्मूले के अनुसार, MSP को उत्पादन लागत से कहीं ज्यादा होना चाहिए ताकि किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल सके।
सरकारी MSP और स्वामीनाथन आयोग की MSP में मुख्य फर्क यही है कि स्वामीनाथन आयोग की MSP में किसानों को उनके उत्पादन की लागत पर अधिक मुनाफा सुनिश्चित किया जाता है। इस फर्क को समझना और इस पर अमल करना किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उनकी आय में सुधार हो सकता है।
यहाँ हम समझेंगे कि सरकारी MSP और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP में क्या अंतर है और क्यों यह महत्वपूर्ण है। हम यह भी देखेंगे कि स्वामीनाथन आयोग क्यों बनाया गया था और उसने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा था।
Table of Contents
किसानों की मांगें क्या हैं?
आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लेते हैं की किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं:
- सरकार MSP को कानूनी रूप से लागू करे।
- MSP स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार C2+50% के फार्मूले के हिसाब से तय की जाए।
- सरकार सभी फसलों पर MSP दे।
- किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए एक प्रभावी मूल्य समर्थन प्रणाली स्थापित की जाए।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या है?
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है।1 यह मूल्य फसल की लागत, बाजार कीमत और अन्य कारकों को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। सरकार तय किये गए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से फसल की खरीद करते है। वर्तमान समय में केंद्र सरकार के द्वारा किसानों से 23 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का भुगतान किया जाता है। MSP का उद्देश्य किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाना और उन्हें नुकसान से बचाना है।
कृषि आयोग एवं सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार के द्वारा प्रत्येक वर्ष दलहन, तिलहन, अनाज और अन्य प्रकार की कृषि फसलों के लिए संबंधित राज्य एवं केंद्रीय सरकार के द्वारा किसानों को लाभान्वित करने हेतु मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) निर्धारित किया जाता है। फसलों की खरीद हेतु एक बार MSP तय हो जाने पर सरकार किसानों से MSP से कम मूल्य पर फसलों की खरीद नहीं कर सकते है।
सरकारी MSP कैसे तय होती है?
सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित MSP तय करती है। CACP का गठन जनवरी1965 में किया गया था।2 सीएसीपी विभिन्न कारकों को ध्यान में रखता है, जैसे कि:
- उत्पादन की लागत: इसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई, मजदूरी आदि की लागत शामिल है।
- बाजार कीमत: पिछले 5 सालों की औसत बाजार कीमत को ध्यान में रखा जाता है।
- मांग और आपूर्ति: फसल की मांग और आपूर्ति भी एमएसपी को प्रभावित करती है।
- अन्य कारक: किसानों की आय, कृषि क्षेत्र में निवेश, खाद्य सुरक्षा आदि भी एमएसपी तय करते समय ध्यान में रखे जाते हैं।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें क्या हैं?
एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट में कई सिफारिशें की थीं3, जिनमें शामिल हैं:
- CACP की सिफारिशों पर आधारित MSP को कानूनी रूप से लागू किया जाए।
- MSP उत्पादन की लागत से कम से कम 50% अधिक होनी चाहिए।
- किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए एक प्रभावी मूल्य समर्थन प्रणाली स्थापित की जाए।
- कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जाए।
- किसानों को कृषि ऋण पर कम ब्याज दर मिलनी चाहिए।
- किसानों को बीमा और अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।
यह भी देखें: किसान विकास पत्र योजना
सरकारी MSP और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP में अंतर
सरकारी MSP:
- यह भारत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है।
- यह मूल्य कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित होता है।
- वर्तमान में, सरकार 23 फसलों के लिए MSP घोषित करती है।
- सरकारी MSP उत्पादन की लागत से कम से कम 50% अधिक होता है।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP:
- स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की है कि MSP “सी2 + 50%” फार्मूले के आधार पर तय किया जाना चाहिए।
- सी2 में उत्पादन की लागत (ए1) और परिवार के श्रम का मूल्य (ए2) शामिल है।
- 50% लाभ मार्जिन को किसानों को उनकी आय और जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए दिया जाना चाहिए।
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP सरकारी MSP से अधिक होगा।
दोनों के बीच मुख्य अंतर:
- तय करने का तरीका:
- सरकारी MSP कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों पर आधारित होता है।
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP “सी2 + 50%” फार्मूले पर आधारित होता है।
- मूल्य:
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP सरकारी MSP से अधिक होगा।
- उद्देश्य:
- सरकारी MSP का उद्देश्य किसानों को संकटपूर्ण बिक्री से बचाना और कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार MSP का उद्देश्य किसानों की आय और जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की शुरुआत
भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना की शुरुआत 1960 के दशक में हरित क्रांति पहल के तहत खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और कृषि आय को स्थिर करने के उद्देश्य से हुई थी। इस योजना का औपचारिक शुभारंभ भारत सरकार द्वारा वर्ष 1966-1967 में किया गया था।4
इस योजना के तहत, सरकार किसानों की फसल का उचित मूल्य दिलाने, उन्हें नुकसान से बचाने, और कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य निर्धारित करती है। पिछले कुछ वर्षों में, MSP योजना में विभिन्न प्रकार के बदलाव और विस्तार किए गए हैं ताकि अधिक से अधिक फसलों को शामिल किया जा सके और किसानों और कृषि क्षेत्र की बदलती जरूरतों को पूरा किया जा सके।
MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य हेतु फसलों के नाम
केंद्र सरकार के द्वारा किसान नागरिकों को लाभान्वित करने के लिए कई तरह की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया है। जिसमें अनाज हेतु 7 फसलें, कॉमर्शियल फसलों के लिए 4 फसल, दलहन फसलों के लिए 5, एवं तिलहन की फसल के लिए 7 फसलों हेतु मिनिमम सपोर्ट प्राइस तय किया गया है। 5
फसल | फसलों के नाम |
अनाज | धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी, जौ |
दालें | चना, अरहर, उड़द, मूंग, मसूर |
तिलहन | रेपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, नाइजरसीड् |
व्यावसायिक फसलें | कपास, गन्ना, खोपरा, कच्चा जूट |
कृषि नीतियों में MSP को इतना महत्व क्यों मिला?
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भारत सरकार द्वारा किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम मूल्य प्रदान करने के लिए निर्धारित मूल्य है। यह मूल्य कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित होता है। वर्तमान में, सरकार 23 फसलों के लिए MSP घोषित करती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कृषि नीतियों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:
1. किसानों को गारंटीकृत आय प्रदान करना: MSP किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम मूल्य प्रदान करता है, जिससे उन्हें गारंटीकृत आय मिलती है। यह किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलने और उन्हें नुकसान से बचाने में मदद करता है।
2. कृषि उत्पादन को प्रोत्साहित करना: MSP किसानों को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करता है। जब किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलने की गारंटी होती है, तो वे अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित होते हैं।
3. खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: MSP खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलता है, तो वे अधिक उत्पादन करते हैं, जिससे देश में खाद्यान्न की कमी नहीं होती है।
4. कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना: MSP कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देता है। जब किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलने की गारंटी होती है, तो निवेशक कृषि क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रेरित होते हैं।
5. किसानों की आय में सुधार: MSP किसानों की आय में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलता है, तो उनकी आय बढ़ती है, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर होता है।
हालांकि, एमएसपी के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं:
- सरकार पर बोझ: MSP सरकार पर बोझ बढ़ाता है। सरकार को किसानों से MSP पर फसल खरीदनी होती है, जिसके लिए सरकार को भारी खर्च करना पड़ता है।6
- बाजार में विकृतियां: MSP बाजार में विकृतियां पैदा कर सकता है। जब सरकार किसानों से MSP पर फसल खरीदती है, तो बाजार में कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं।
- अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा: MSP के कारण अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा हो सकती है। जब सरकार कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है, तो अन्य क्षेत्रों जैसे कि उद्योग और सेवा क्षेत्र की उपेक्षा हो सकती है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि MSP एक जटिल मुद्दा है। इसके कई पहलू हैं और इस पर कई तरह की राय है.
MSP: आंकड़े क्या कहते हैं?
पिछले कुछ समय से, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को भारत के कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। MSP को कानूनी रूप से लागू करने पर आंकड़े क्या कहते हैं?
आंकड़ों का विश्लेषण:
- वित्त वर्ष 2020 में कुल कृषि उपज का मूल्य 40 लाख करोड़ रुपये था।
- एमएसपी के तहत 24 फसलें शामिल हैं, जिनका बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 2020) है।
- वित्त वर्ष 2020 में कुल एमएसपी खरीद 2.5 लाख करोड़ रुपये थी, जो कुल कृषि उपज का 6.25% और एमएसपी के तहत उपज का 25% है।
MSP गारंटी कानून के प्रभाव:
- यदि MSP गारंटी कानून लागू किया जाता है, तो सरकार को सालाना 10 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च करना होगा।
- यह राशि सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे और रक्षा पर किए जाने वाले खर्च के बराबर है।
- यह पिछले सात वित्तीय वर्षों में बुनियादी ढांचे पर किए गए औसत वार्षिक खर्च से भी अधिक है।
MSP गारंटी कानून की व्यवहार्यता:
- 10 लाख करोड़ रुपये की वार्षिक लागत का वहन करना सरकार के लिए मुश्किल होगा।
- इस खर्च को पूरा करने के लिए सरकार को बुनियादी ढांचे और रक्षा में खर्च में कटौती करनी होगी या करों में वृद्धि करनी होगी।
- यह एक वित्तीय आपदा का कारण बन सकता है और भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता है।
सरकार का दावा और आयोग के अन्य सुझाव
मोदी सरकार ने दावा किया है कि उसने स्वामीनाथन आयोग के MSP सुझाव को मानते हुए, लागत प्लस 50% का फार्मूला अपना लिया है। यह बात कागज पर तो अच्छी लगती है, लेकिन वास्तविकता में किसानों की स्थिति में बहुत बड़ा सुधार नहीं देखने को मिला है। इसकी मुख्य वजह है लागत की परिभाषा में अंतर।
सरकार A2+FL लागत को मानक मानती है, जबकि किसान C2 लागत पर जोर देते हैं, जिसमें भूमि के रेंटल वैल्यू जैसे कारक भी शामिल होते हैं।
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में अन्य गंभीर मुद्दों पर भी सुझाव दिए गए थे, जैसे कि भूमि सुधार, सिंचाई की बेहतर व्यवस्था, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, कृषि उत्पादन की प्रोडक्टिविटी में वृद्धि, और किसानों के लिए बेहतर कर्ज और बीमा सुविधाएं। ये सभी सुझाव इस उम्मीद में दिए गए थे कि भारतीय कृषि क्षेत्र में स्थायी और समृद्ध विकास होगा।
सरकार के लिए चुनौतियां
हालांकि, इन सिफारिशों को पूर्णतः लागू करने की चुनौतियां बहुत हैं। राजनीतिक इच्छा शक्ति, प्रशासनिक क्षमता, और वित्तीय संसाधनों की कमी जैसे कारकों ने इस प्रक्रिया को धीमा कर दिया है। किसानों के बीच असंतोष और आंदोलनों का मुख्य कारण भी यही है कि उन्हें लगता है कि सरकार उनकी मांगो और जरूरतों को पूरा नहीं कर रही है।
आगे क्या होगा?
यह कहना मुश्किल है कि आगे क्या होगा। सरकार किसानों की मांगो को मानने के लिए तैयार होगी या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। किसानों ने आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है। यदि सरकार किसानों की मांगो को नहीं मानती है, तो आंदोलन और तेज हो सकता है।
यह भी ध्यान रखना होगा कि MSP एक जटिल मुद्दा है। इसके कई पहलू हैं और इस पर कई तरह की राय है। किसानों की मांगो को समझने के लिए, MSP के सभी पहलुओं को समझना महत्वपूर्ण है।
इस मुद्दे का समाधान आसान नहीं है, लेकिन एक संवेदनशील और समग्र दृष्टिकोण अपनाकर, जिसमें किसानों की आवाज को महत्व दिया जाए और उनके साथ संवाद किया जाए, एक सकारात्मक दिशा में कदम बढ़ाया जा सकता है। अंत में, किसानों की समृद्धि ही देश की समृद्धि का आधार है।
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