प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय, वृंदावन वाले महाराज, आश्रम वृंदावन, जन्म, उम्र, परिवार

महाराज जी का जन्म एक सात्विक और विवेक परिवार में हुआ था उनकी पैदायशी एक गरीब ब्राम्‍हण परिवार में कानपुर उत्‍तर प्रदेश में हुआ। उनका बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा गया।

उनकी माता का नाम श्रीमती रामा देवी और पिता का नाम श्री शंभू पाण्‍डेय था प्रेमानंद जी महाराज को पीले बाबा के नाम से भी जाना जाता है।

इनके दादा सन्यासी थे बुजुर्गो का आशीर्वाद होने की वजह से उनके घर का वातावरण अत्यंत शुद्ध, निर्मल और भक्तिपूर्ण रहा करता था। उनका पूरा परिवार संत होने की वजह से उनके घर पर संतो और महात्‍माओं का आना जाना लगा रहता था।

हमेशा उनकी बातें और सत्संग सुनकर उनके मन व हृदय में आध्‍यात्‍म की बातें बैठ गयी थी, प्रेमानंद जी महाराज का जीवन भक्ति भावना से भरा है। आगे जानते हैं प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय के बारे में विस्तार से।

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Premanand Ji Maharaj Biography

कुछ समय पहले इनकी सोशल मिडिया पर काफी चर्चा हो रही थी क्योकि उनके यहाँ प्रसिद्ध क्रिकेटर विराट कोहली उनकी पत्नी अनुष्का शर्मा और उनकी बेटी वामिका कोहली आये हुए थे वहाँ उन्होंने महाराज के दर्शन कर सत्संग भी सुना। जिसके बाद विराट कोहली ने दो शतक मारे।

महाराज जी का नाम तो सुना ही होगा अपने, आज उनके बारें में थोड़ा जान भी लेते है। तो आइये जानते है, प्रेमानंद जी महाराज का जीवन (Premanand Ji Maharaj Biography) जन्म, उम्र और परिवार की कहानी।

प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय

घर का माहौल आध्‍यात्‍मिक होने की वजह से प्रेमानंद जी महाराज ने कम उम्र से चालीसा का पाठ पड़ना शुरू कर दिया था उनके माता – पिता हमेशा संत सेवा और अनेक सेवा में लगे रहते थे उनके बड़े भाई ने श्रीमद्भागवतम के श्लोक पढ़कर परिवार को आगे बढ़ाया।

जब प्रेमानंद महाराज 5 वीं कक्षा में थे तब उन्होंने गीता, श्री सुखसागर पढ़ना शुरू किया। स्कूल में पढ़ाई के दौरान उनके मन में बहुत सारे सवाल उठते थे उत्तर निकालने के लिए उन्होंने श्री राम और श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी का जाप किया।

जब वे 9 वी कक्षा में आये तब उन्होंने ईश्वर की खोज करने के लिए आध्यात्मिक जीवन जीने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। उसके लिए वे सब कुछ त्यागने को तैयार थे, उन्होंने अपनी माँ को अपने निर्णय के बारें में बताया। 1

3 वर्ष की उम्र में महाराज जी ने एक दिन मानव जीवन जीने के पीछे की सच्चाई जानने के लिए अपना घर छोड़ दिया। आगे जानते है, प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय से जुडी कहानियाँ।

इसी प्रकार से जया किशोरी ने भगवान की भक्ति में लीन होने के लिए सब कुछ त्याग दिया है। इसलिए आज हजारों लोग प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन करने और भगवत कथा सुनने के लिए आते है।

Premanand ji Maharaj Biography Overview

बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे
जन्म स्थल अखरी गांव,सरसोल ब्लॉक, कानपुर, उत्तर प्रदेश
माता-पिता का नाम माता रमा देवी और पिता श्री शंभू पाण्‍डेय
घर त्यागा 13 साल की उम्र में
महाराज जी के गुरु श्री गौरंगी शरण जी महाराज
गुरु की सेवा 10 वर्षो तक
महाराज की उम्र(age)60 वर्ष लगभग
Websitevrindavanrasmahima.com

प्रेमानंद महाराज जी का जन्म

प्रेमानंद महाराज जी का जन्म अखरी गांव, सरसोल ब्लॉक, कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था उनका परिवार बहुत साधारण और पवित्र था इसलिए उनका बचपन बहुत ही साधारण रूप से बिता।

बचपन से उनका बौद्धिक स्तर अन्य बच्चों से अलग था, उनका ज्यादा ध्यान भक्ति भाव पर था बचपन से मंदिर जाना, कीर्तन करना और चालीसा का पाठ पड़ना आरंभ किया।

Premanand ji Maharaj का परिवार

महाराज के पिता श्री शंभु पाण्डेय एक भक्त व्यक्ति थे उनकी माता रमा देवी थी जो की बहुत पवित्र थी उनके दादा जी भी सन्यासी थे कुल मिलाकर उनके घर का वातावरण शुद्ध और निर्मल था उनके माता-पिता हमेशा से साधु – संतो की सेवा में लगे रहते थे उनके बड़े भाई ने श्रीमद्भागवतम का आध्यत्मिक ज्ञान प्राप्त किया था जिसको पूरा परिवार एक साथ बैठ कर सुनते थे।

महाराज का ब्रह्मचारी जीवन

घर छोड़ने के बाद महाराज जी को नैष्ठिक ब्रह्मचर्य में दीक्षित किया गया था उनका नाम बदल कर आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी नाम रखा। उनके बाद उन्होंने सन्यास स्वीकार कर दिया था महावाक्य को स्वीकार करने पर उनका नाम स्वामी आनंदाश्रम रखा गया।

कठिन तपस्या

ईश्वर को पाने के लिए कठिन तपस्या की और ठान लिया की तब से उनका सारा जीवन भगवान् की भक्ति में समर्पित हो गया है। अब वे अपना ज्यादा समय अकेले में बिताना पसंद करते है।

भोजन पाने के लिए भिक्षा मांगते और कई दिनों तक उपवास करते और हमेशा भगवान की लीला में मग्न रहते थे। प्रेमानंद जी ने शारीरिक चेतना से ऊपर उठ कर मोह-माया को छोड़ कर, पूर्ण त्याग का जीवन व्यतीत किया। उसके बाद उन्होंने आकासवृत्ति को स्वीकार किया यानि बिना किसी व्यक्तिगत प्रयास के केवल वही स्वीकार करना जो भगवान का दिया गया हो और किसी चीज़ की उम्मीद नहीं करना।

सन्यासी के रूप में उनका अधिकांश समय गंगा नदी के किनारे बीतता था क्योकि महाराज ने कभी भी आश्रम के पदानुक्रमित जीवन को स्वीकार नहीं किया उन्होंने सब कुछ त्याग दिया था।

ज्यादा समय गंगा नदी के साथ बिताने से उन्होंने गंगा नदी को अपनी दूसरी माँ के रूप में स्वीकार कर लिया। वे खाना, मौसम और कपडे की परवाह किये बिना ही वाराणसी और हरिद्वार नदी के घाटों पर घूमते रहे।

उनकी दिनचर्या कभी नहीं बदलती थी फिर चाहे कितनी भी ठण्ड क्यों न हो वे हमेशा गंगा नदी में 3 बार स्नान जरूर करते थे उपवास लेने के लिए उन्होंने कई दिनों तक भोजन को त्याग दिया था।

ठंडा मौसम होने की वजह से उनका शरीर कापने लग गया था क्योकि वे भगवन के ध्यान में लगे हुए थे इसलिए उनको कुछ अहसास नहीं हुआ। सन्यास और आस्था के कुछ वर्षो बाद उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद मिल गया।

भक्ति के लिए वृन्दावन में आगमन

महाराज जी के दया और ज्ञान पर प्रभु शिव का पूरा आशीर्वाद था एक दिन वे बनारस में एक पेड़ के नीचे ध्यान कर रहे थे। तभी वे श्री श्यामाश्याम की कृपा से वे वृंदावन की महिमा के प्रति आकर्षित हुए। बाद में उन्होंने एक रास लीला में भाग लिया उन्होंने करीब एक महीने तक रास लीला में भाग लिया।

उनकी दिनचर्या सुबह के समय श्री चैतन्य महाप्रभु की लीला और रात में श्री श्यामाश्याम की रास लीला देखना था एक महीने के अंदर ही वे लीला में इतने मग्न और आकर्षित हो गए कि वह उनके बिना अपने जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे इस एक महीना ने उनका जीवन पूरी तरह बदल दिया था।

ऐसे ही कई दिव्य चमत्कारों के नाम से जानने वाले महाराज धीरेन्द्र कृष्णा शास्त्री है, जो अपने चमत्कार से पूरी दुनिया में जाने जाते है। जिनके दर्शन करने लाखों लोग आते है।

वृंदावन वाले महाराज

महाराज जी कुछ समय के बाद स्वामी जी की सलाह से और श्री नारायण दास भक्तमाली के एक शिष्य की मदद से मधुरा जाने को तैयार हो गए वो नहीं जानते थे वृन्दावन हमेशा के लिए उनका दिल चुरा लेगा।

महाराज जी वृन्दावन में किसी को नहीं जानते थे महाराज जी वृन्दावन रहने लगे। उनके दिन की शुरुवात वृन्दावन की परिकर्मा और श्री बांकेबिहारी के दर्शन करना था महाराज जी पूरा दिन राधावल्लव जी को देखते रहते थे

एक दिन वृन्दावन के पुजारी ने महाराज जी को श्री राधारस सुधानिधि का एक श्लोक सुनाया। लकिन वे उसके अर्थ को नहीं समझ सके। अर्थ को समझने के लिए गोस्वामी जी ने उन्हें श्री हरिवंश जी का जाप करने को बोला महाराज जी ऐसा करने से हिजक रहे थे क्योकि उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया था।

उनके दूसरे दिन बाद जब महाराज जी ने वृन्दावन की परिकर्मा की तो उन्होंने खुद को श्री हरिवंश महाप्रभु का नाम जाप करते हुए पाया। एक प्रकार से ये श्री हरिवंश की लीला में मग्न हो गए।

वृन्दावन में एक आध्यत्मिक संगठन है इस संगठन की स्थापना प्रेमानंद महाराज जी के द्वारा हुई है महाराज जी का मुख्य उद्देस्य था वृन्दावन में विभिन्न धार्मिक कार्यो को करना और उनके माध्यम से प्रेम और शांति को फैलाना।

ये लोगो के मन और हृदय को खुशी और शांति प्राप्त करने के लिए प्रभु का ध्यान, योग और अन्य आध्यात्मिक अभ्यासों को करने की सलाह देते है महाराज जी ये सभी सेवाय नि:शुल्क प्रदान करते है।

प्रेमानंद जी महाराज का स्वास्थ्य

Maharaj ji की उम्र अभी लगभग 60 साल है वह अभी वृंदावन में रह रहे है और अपना पूरा ध्यान आध्यात्मिक गतिविधियों, भगवान कृष्ण का ध्यान और नि:स्वार्थ सेवा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है।

प्रेमानंद जी महाराज वृद्धावस्था में होने के बावजूद भी उनका स्वास्थ्य अच्छे हैं इतना ही नहीं, उनके ज्ञान और दर्शन करने के लिए भारत देश के ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग उनके पास आते है, और उनका बहुत सम्मान करते है वे आपने ज्ञान और दर्शन के लिए पूरी दुनिया में सम्मानित हुए है।

कहा जाता है कई सालों से उनके दोनों गुर्दे (kidney) ख़राब है उसके बावजूद भी वे अभी तक स्वस्थ है उनका मानना है उनका सारा जीवन राधा जी की सेवा और भक्ति के है। सब कुछ उन्होंने भगवान के हाथ में छोड़ दिया है आज भी उनकी दिनचर्या भक्ति करना है और वहाँ आने जाने वाले भक्तों से मिलकर उनकी समस्या को सुनकर उसका हल निकालते है

प्रेमानंद जी महाराज का पता और संपर्क नंबर

वर्तमान समय में प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन के आश्रम में रह रहे है उनका नंबर सार्वजनिक नहीं किया हुआ है अगर आप उनके दर्शन करना चाहते है तो इस Address– श्री हित राधा केली कुन्ज, वृन्दावन परिकर्मा मार्ग, वराह घाट, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश, वृंदावन- 281121 .

इस पते पर जाकर महाराज जी के दर्शन कर सकते है, अधिक जानकारी के लिए उनकी ऑफिसियल वेबसाइट पर जाकर जानकारी ले सकते है।

Premanand Ji Maharaj से जुड़े प्रश्नों के उत्तर (FAQs)

महाराज जी के गुरु कौन है?

महाराज जी के गुरु का नाम श्री गौरंगी शरण जी महाराज है

प्रेमानंद जी महाराज ने सन्यासी जीवन कैसे चुना?

जब वे बचपन में विद्यालय जाते थे तब उनके मन में बहुत सारे सवाल उठते थे कि क्या इस शिक्षा से उनको अपने लक्ष्य की प्राप्ति होगी या नहीं। उन्होंने भौतिकवादी शिक्षा पर प्रश्न उठाए। जब उन्हें इन सवालों का जवाब नहीं मिला तो उन्होंने भगवान का जप कर अपने सवालों के जवाब खोजने शुरू कर दिया। उन्होंने जय श्री राम और श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी का जाप करना आरंभ कर दिया।

Premanand Ji Maharaj ने सन्यासी जीवन लेने का कब सोचा?

जब महाराज जी 9 वी कक्षा यानि 13 साल के थे तब उन्होंने भगवन की शरण में जाने वाले मार्ग की खोज की और अपना पूरा तन-मन आध्यत्मिक जीवन पर लगाया।

प्रेमानंद जी महाराज का सन्यासी जीवन कैसे बिता?

वैसे सबका सन्यासी जीवन बहुत कठिन होता है उनको भी कठनाई आयी उन्होंने कई वर्षो तक अपना जीवन गंगा नदी के किनारे बिताया, खाने -पीने की परवाह नहीं की जो मिलता था वो खाया, बिना कपड़ो के गर्म-ठन्डे मौसम को सहन किया और बिना किसी की परवाह के बनारस के घाट पर घूमते थे

Premanand Ji Maharaj का लोगो के लिए क्या उपदेश होता है?

प्रेमानंद जी महाराज लोगों को श्री राधा रानी जी की भक्ति के मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं हर किसी को ईश्वर में विश्वास करना चाहिए, कठोर शब्द का उपयोग न करना, दूसरों का मजाक नहीं उड़ाना और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरुरी है

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