गिरिजा टिक्कू जीवन परिचय, परिवार, बैकग्राउंड, फोटो

Girija Tickoo Story: हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ सब तरफ सुर्खियां बटोर रही हैं। ये फिल्म कश्मीरी पंडितों पर उनकी ही जन्मभूमि पर हुए अत्याचारों की कहानी बयान करती है। कैसे उन्हें कश्मीर से पलायन करना पड़ा और आतंकियों की दुर्दांतता का शिकार होना पड़ा। इन्ही अत्याचारों की फेहरिश्त में जुड़ा एक और दर्दनाक वाकया है – गिरिजा टिक्कू का। आज इस लेख के माध्यम से हम आप को उसी पीड़ित गिरिजा टिक्कू का जीवन परिचय देने जा रहे हैं। जो कि 1990 के दौर में आतंकियों का शिकार हुई।

गिरिजा टिक्कू जीवन परिचय

गिरिजा टिक्कू बारामुला जिले में अरीगाम गाँव की रहने वाली थी। बता दें की वर्तमान में अरीगाम बांदीपोरा जिले में स्थित है। गिरिजा उस वक्त एक सरकारी स्कूल में लैब सहायिका का कार्य करती थी। गिरिजा के परिवार में 60 साल की बूढी माँ, उसके 26 वर्षीय पति, एक 4 साल का बेटा और एक 2 साल की बेटी थी। 11 जून 1990 का दिन था वो, जब वो अपनी सैलरी लेने के लिए स्कूल गयी थी। जिस के बाद वो अपनी एक मुस्लिम सहकर्मी के घर उससे मिलने चली गयी, जो कि उसी गाँव में थी। गिरिजा को इस बात का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था की आतंकी उस पर नज़र रखें हैं। आतंकियों ने उसे उसके सहयोगी के घर से ही सबके सामने ही अपहरण कर लिया। वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति ने उन आतंकियों को रोकने का प्रयास नहीं किया। और आतंकी गिरिजा की आँखों में पट्टियाँ बांधकर किसी अज्ञात जगह पर ले गए।

अपहरण के कुछ दिन बाद उसका शरीर बहुत बुरी हालत में मिला। उसका क्षत – विक्षत शरीर सड़क के किनारे पड़ा हुआ था। आतंकियों ने उसके अपहरण के बाद इतने दिनों उसका सामूहिक बलात्कार किया और उसे तरह तरह से प्रताड़ित किया। इतना होने के बाद भी आतंकियों ने बड़ी बेरहमी से उसके शरीर को बिजली से चलने वाले आरे पर रख दिया और उसके शरीर को बीच से काट दिया। और फिर इसके बाद गिरिजा के निर्वस्त्र शरीर को भयावह स्थिति में सड़क किनारे डाल दिया। गिरिजा को अपने हिन्दू होने और कश्मीरी पंडित होने की वजह से इतनी बर्बरता के साथ मार दिया गया था।

girija tikku
गिरिजा टिक्कू (Girija Tickoo)

उस वक्त सभी आतंकियों का इतनी बर्बरता के माध्यम से वहां के कश्मीरी पंडितों और हिन्दुओं को एक ही सन्देश देना था। और वो था की कश्मीर में सिर्फ मुसलमान या निज़ाम-ऐ-मुस्तफा को मानने वाले लोग ही रहेंगे। इस के अतिरिक्त किसी अन्य मानने वाला उनके लिए काफिर था। वो समय ऐसा था जब वहाँ के रहने वालों के पास सिर्फ तीन विकल्प थे। या तो सभी स्थायी लोग इस्लाम अपना लें, या फिर मारे जाएँ और यदि जीवित रहना चाहते हैं तो जल्द से जल्द कश्मीर छोड़कर चल जाएँ।

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90 के दशक में जब कश्मीर हिन्दुओ के प्रति जलन की भावना के चलते नरसंहार की आग में जल रहा था उस समय वहां रहने वाले गैर मुस्लिम लोगों के पास अपनी जन्मभूमि को छोड़ने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था। उस दौर में पलायन करने वाले परिवारों के अनुसार कश्मीरी पंडितों के साथ जुर्म की हर हद को पार किया गया था। कितने लोगों को मौत के घाट उतार आ गया, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, यही नहीं घर के बच्चे और बूढ़ों को भी नहीं बख्शा गया, सिर्फ इसलिए की वो हिन्दू थे। आज इतने समय के बाद भी वहाँ के स्थानीय लोग जो पलायन के चलते अपनी जमीन छोड़ आये थे, उनके जख्म आज भी उन्हें दर्द देते हैं।

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