प्रायः आप भी देश की मौद्रिक नीति के सन्दर्भ में रेपो दर और रिवर्स रेपो दर के बारे में समाचार पत्रों एवं अन्य माध्यमों से सुनते या पढ़ते होंगे। यह रेपो और रिवर्स रेपो दर क्या होता है ! अकसर अर्थव्यवस्था में रेपो और रिवर्स रेपो दर के बारे में सुनने पर हमारे मन में भी यह ख़याल आता है की यह रेपो और रिवर्स रेपो दर क्या होता है ? इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है? और सबसे महत्वपूर्ण इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
चलिए आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपके इन्हीं सभी सवालों के जवाब आसान भाषा में देने वाले है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताने वाले है की रेपो और रिवर्स रेपो दर क्या है?
(Repo rate and Reverse repo rate in Hindi), इसका अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। साथ ही यहाँ रेपो रेट के बढ़ने के कारणों एवं इसके प्रभावों के बारे में भी चर्चा की जाएगी।
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रेपो रेट (Repo rate) क्या होता है ?
- भारत की मौद्रिक व्यवस्था के संचालन हेतु भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) शीर्ष संस्था है जिसके द्वारा देश में मौद्रिक नीति (Monetary policy) को निर्धारित किया जाता है। रेपो और रिवर्स रेपो दर समझने के सन्दर्भ में आरबीआई (RBI) महत्वपूर्ण संस्था है जिसके द्वारा रेपो और रिवर्स रेपो दर को निर्धारित किया जाता है। रेपो रेट (Repo rate) वह ब्याज दर होती है जिस पर अन्य बैंकों द्वारा आरबीआई (RBI) से कर्ज प्राप्त किया जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो RBI जिस ब्याज दर पर अन्य बैंकों को कर्ज देता है वह दर ही रेपो रेट (Repo rate) या रेपो दर कहलाती है :-
इसे निम्न प्रकार से समझें :- माना HDFC द्वारा RBI से 10 करोड़ रुपए का धन उधार लिया जाता है। माना RBI द्वारा इस धन पर 6 फीसदी का ब्याज वसूल किया जाता है तो इस स्थिति में रेपो रेट (Repo rate) की दर 6 फीसदी है।
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) क्या होता है ?
- रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) जैसे की इसके नाम से ही इंगित होता है की यह रेपो रेट (Repo rate) का रिवर्स यानी की उल्टा होता है अर्थात रेपो रेट (Repo rate) की उल्टी प्रक्रिया ही रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) कहलाती है। जहाँ रेपो रेट (Repo rate) वह ब्याज दर है जिस पर RBI अन्य बैंको को कर्ज प्रदान करता है वहीं रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) वह ब्याज दर है जिस पर RBI अन्य बैंको से कर्ज प्राप्त करता है।
यानी सरल शब्दो में कहा जाए तो रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर RBI अन्य बैंको को धन उधार देता है जबकि रिवर्स रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर RBI अन्य बैंको से धन उधार लेता है। इस प्रकार यह दोनों प्रक्रियाएँ एक दूसरे के विपरीत होती है।
इसे निम्न प्रकार से समझें :- माना HDFC बैंक द्वारा अपनी अपने व्यापार को पूर्ण करने के पश्चात शेष राशि में से 10 करोड़ रुपए आरबीआई के पास जमा करवाया जाता है और आरबीआई द्वारा इस पर 4 फीसदी की दर से ब्याज दिया जाता है तो ब्याज की यह दर (4 फीसदी) रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) कहलाती है।
Repo rate and Reverse repo rate क्यों बढ़ते है ?
- रेपो और रिवर्स रेपो दर के बारे में जानकारी प्राप्त करने के पश्चात चलिए यह जानते है की आखिर रेपो दर तथा रिवर्स रेपो दर में बदलाव क्यों होता है। दरअसल यह दरें पूर्ण रूप में मार्केट पर निर्भर करती है। जब बाजार में मुद्रा की अधिकता हो जाती है तो इस स्थिति में मुद्रा की आपूर्ति को बाधित करने के लिए RBI द्वारा रेपो रेट (Repo rate) में वृद्धि की जाती है जिससे अधिक ब्याज प्राप्त करने के लिए बैंकों द्वारा अपना धन RBI के पास जमा करवाया जाता है एवं मार्केट में तरलता में कमी आती है। वही मार्केट में तरलता की कमी होने पर रेपो रेट (Repo rate) में कमी प्रभावी उपाय है। इसी प्रकार रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) भी बाजार की स्थिति के अनुसार प्रभावित होती है।
Repo Rate and Reverse Repo Rate बढ़ने के प्रभाव
- रेपो रेट (Repo rate) तथा रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) देश की अर्थव्यवस्था को प्रमुख रूप से प्रभावित करते है तथा फलस्वरूप हमारे दैनिक जीवन को भी। यह दरें RBI की मौद्रिक नीति को संचालित करने का महत्वपूर्ण हथियार भी है जो अर्थव्यवस्था के संचालन हेतु महत्वपूर्ण है। मुद्रास्फीति अधिक होने पर RBI द्वारा रेपो रेट (Repo rate) की दरों में वृद्धि की जाती है जिससे बैंक अधिक से अधिक नकदी RBI में जमा करवाते है जिससे बाजार में तरलता यानी मुद्रा की आपूर्ति में कमी हो जाती है। इससे महँगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलती है फलस्वरूप विभिन्न वस्तुएँ सस्ती हो जाती है।
- रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) में बदलाव के माध्यम से भी आम आदमी के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। RBI द्वारा रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) की दर घटा देने पर बैंकों के द्वारा ग्राहकों को होम लोन में छूट प्रदान की जाती है जिससे अधिक से अधिक लोग अपना घर बनाने का सपना पूरा कर पाते है।
क्या है रेपो और रिवर्स रेपो दर संतुलित करने के उपाय
- RBI द्वारा वर्ष में 6 बार मौद्रिक नीति की समीक्षा की जाती है यानी की हर दो महीनों में RBI द्वारा मौद्रिक नीति की समीक्षा की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा देश की मौद्रिक नीति की समीक्षा की जाती है एवं रेपो दरों तथा रिवर्स रेपो दरों में परिवर्तन से सम्बंधित निर्णय लिए जाते है। बाजार की स्थिति के अनुसार RBI द्वारा विभिन्न दरों को संतुलित करने के सम्बन्ध में निर्णय पारित किए जाते है।
रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट सम्बंधित प्रश्न (FAQ)
रेपो रेट तथा रिवर्स रेपो रेट देश की मौद्रिक नीति (Monetary policy) से सम्बंधित है।
देश में रेपो रेट तथा रिवर्स रेपो रेट का निर्धारण भारत की शीर्ष वित्तीय संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है।
रेपो रेट (Repo rate) वह ब्याज दर होती है जिस पर रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य बैंको को कर्ज दिया जाता है।
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) वह ब्याज दर होती है जिस पर रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य बैंको से कर्ज लिया जाता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा देश में रेपो रेट (Repo rate) तथा रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo rate) की समीक्षा प्रति 2 माह में की जाती है यानी वर्ष में 6 बार मौद्रिक नीति की समीक्षा की जाती है।