संविधान की धारा 44 के तहत ये राज्य की जिम्मेदारी बताई गई है कि वो देश में समान नागरिक संहिता लागू करे। लेकिन ये आज तक लागू नहीं हो पाया है।
कर्नाटक के एक कॉलेज से हिजाब पर शुरू हुआ विवाद राष्ट्रीय स्तर पर छाया हुआ है और. पिछले कुछ दिनों के अंदर आपने देखा ही कि कैसे यह एक राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बन गया है
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पहले भी काफी चर्चा हो चुकी है. इसके पक्ष और विपक्ष में भी लोग अपना मत रख चुके हैं. इस बार हिजाब को लेकर हो रहे विवाद के बीच फिर से चर्चा में आया है.
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा मतलब है- देश के हर नागरिक के लिए एक समान कानून. फिर भले ही वह किसी भी धर्म या जाति से ताल्लुक क्यों न रखता हो.
समान नागरिक संहिता का मतलब हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है. इसके तहत हर धर्म के कानूनों में सुधार और एकरूपता लाने पर काम होगा.
हर धर्म में अलग-अलग कानून होने से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है. कॉमन सिविल कोड आ जाने से इस मुश्किल से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के निपटारे जल्द होंगे.
पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पहले से लागू है
भारत में समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. इस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बड़ी आपत्ति रही है
देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जो एक सबसे बड़ी वजह है, वो महिलाओं को समान अधिकार देना है। मुस्लिम महिलाओं की स्थिति इससे बेहतर होगी.
ऑल इंडिया वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर मौजूदा सरकार के साथ खड़ी दिख रही है।
वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक, सरकार महिलाओं को प्रताड़ित करने वाली मध्ययुगीन प्रथाओं को खत्म करना चाह रही है, जिसमें तीन तलाक, बहु-विवाह और निकाह हलाला सबसे अहम है।