भारत जोकि त्योहारों का देश है यहाँ हर त्यौहार को अलग अलग राज्यों में विशेष ढंग से मनाया जाता है। देश में अलग अलग स्थानों में बैसाखी या वैशाखी को अलग -अलग नामों से जाना जाता है।

बैसाखी का त्यौहार हर साल सिख धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह त्यौहार हर साल विक्रम सम्वंत के पहले महीने में पड़ता है। सिखों के प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार बैसाखी का है।

Baisakhi or Vaisakhi Festival को बंगाल में नबा वर्ष, असम में बिहू और केरल राज्य में पूरम विशु के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।

हर साल बैसाखी में पंजाब में परम्परागत नृत्य भांगड़ा /गिद्दा किया जाता है। इसी दिन जगह जगह पर मेलों का आयोजन किया जाता है। इसी दिन पंज प्यारों को याद किया जाता है।

वैशाखी त्यौहार मुख्यता किसानों का त्यौहार है इस दिन रवि की फसल पक कर तैयार होती है। इसी दिन गुरुगोविंद ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।

इसी दिन सिख लोगों द्वारा अपने सरनेम को सिंह के रूप में अपनाया गया था। हर साल बैसाखी 14 अप्रैल को मनाई जाती है। इस वर्ष 2023 में भी वैशाखी 14 अप्रैल को है।

एक बार की बात है जब 1699 में सिखों के अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने सभी सिखों को आमंत्रित किया था। सभी लोग गुरु की आज्ञा पाकर आनंदपुर साहिब मैदान में इक्कठा हुए।

गुरु गोविन्द जी के मन में अपने शिष्यों की परीक्षा लेने के विचार आया उन्होंने अपनी तलवार को कमान से निकलते हुए कहा -”मुझे सर चाहिए” यह सुनकर सभी शिष्य असमंजस में पड़ गए।

तभी भीड़ से लाहौर के रहने वाले दयाराम ने अपना सर गुरु की शरण में हाजिर किया। जिसके बाद गुरु गोविन्द सिंह जी उस शिष्य को अपने साथ अंदर ले गए और उसी वक्त अंदर से खून की धारा बहने लगी।

गुरु गोविन्द सिंह जी इसके बाद फिर से बाहर आये और फिर कहने ;-”मुझे सर चाहिए” गुरु के इतना कहते ही सहारनपुर के धर्मदास ने अपना सर गुरु के शरण में अर्पित करने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाया।