News By Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने साझा घर में बहू के रहने के अधिकार को स्पष्ट किया। संपत्ति मालिक और बहू यदि एक ही परिवार के सदस्य हैं तो बहू को साझा घर में रहने का अधिकार है। यह स्पष्टीकरण सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दिया है। इस मामले में, एक ससुर ने अपनी बहू को अपने खरीदे हुए घर से बेदखल करने के लिए ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर की थी। ट्रायल कोर्ट ने ससुर के पक्ष में फैसला सुनाया था। लेकिन हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बहू को साझा घर में रहने का अधिकार है, भले ही वह घर अर्जित संपत्ति हो या पैतृक संपत्ति। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि बहू को साझा घर में रहने का अधिकार तभी होगा जब वह घरेलू हिंसा की शिकार हो। इस फैसले से घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को एक बड़ी राहत मिली है। अर्थात डोमेस्टिक वायलेंस ऐक्ट का आदेश सिविल सूट में साक्ष्य बनेगा।
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ट्रायल कोर्ट ने दिया बहू को ससुर की खरीदी संपत्ति से निकलने का आदेश
ससुर ने अपनी बहू को घरेलू हिंसा के आरोपों के बीच अपनी खरीदी गई संपत्ति से बेदखल करने के लिए ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि संपत्ति उनकी खुद की है और बहू का उसमें कोई अधिकार नहीं है। बहू ने कहा कि संपत्ति उसके ससुर और उनके परिवार की संयुक्त संपत्ति है और वह उसमें रहने का हकदार है। ट्रायल कोर्ट ने ससुर के पक्ष में फैसला दिया और बहू को 15 दिन में संपत्ति खाली करने का आदेश दिया।
बहू ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की।हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और मामले को दोबारा सुनवाई के लिए भेज दिया हाई कोर्ट ने कहा कि बहू घरेलू हिंसा की शिकार है और वह सास-ससुर के साथ डोमेस्टिक रिलेशनशिप में है। इसलिए, उसे संपत्ति में रहने का अधिकार है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पलटा ट्रायल कोर्ट का फैसला
एक पीड़ित महिला ने अपने ससुर के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर की थी कि उसे साझा घर से बेदखल करने का आदेश दिया जाए। हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सिर्फ संपत्ति के स्वामित्व के आधार पर फैसला दिया। लेकिन घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (डीवी ऐक्ट) के तहत महिला को साझा घर में रहने का अधिकार है।
हाई कोर्ट ने कहा कि डीवी ऐक्ट एक आशा जाग्रत करता है तथा वह इस बात को नहीं देखता कि संपत्ति किसकी है। यह फैसला सिर्फ महिला को हिंसा से बचाने के लिए किया गया है। इस फैसले के तहत अब देश में कोई भी घरेलु हिंसा से पीड़ित महिला सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं।
डोमेस्टिक रिलेशनशिप में होगा संपत्ति में रहने का अधिकार
दिल्ली हाई कोर्ट ने द्वारा एक जरुरी फैसले में कहा गया, कि घरेलू हिंसा पीड़ित बहू को ससुर के घर में रहने का अधिकार है। यह अधिकार तब तक लागू होता है जब तक बहू घरेलू हिंसा की शिकार हो और वह संपत्ति के मालिक के साथ डोमेस्टिक रिलेशनशिप में होती है।
हाई कोर्ट ने इस फैसले में कहा है कि ट्रायल कोर्ट मामले को फिर से देखा जाएगा। यदि बहू का सिर्फ ये दावा है कि डीवी ऐक्ट के तहत उसे शेयर्ड हाउस होल्ड प्रॉपर्टी में रहने का अधिकार है तो वह आदेश के वक्त महिला के वैकल्पिक रिहायश की व्यवस्था देखे। डीवी ऐक्ट के तहत जब तक मेट्रोमोनियल रिलेशनशिप रहता है अर्थात वैकल्पिक रिहायश में रहने का अधिकार है।
अगर बहू ससुर की सपत्ति के एकाधिकार को चुनौती करती है तो वह उसके द्वारा किए गए दावे को परखा जाएगा तथा साक्ष्यों के तहत ही फैसला लिया जाएगा। यदि बहू को घर से निकाला जाता है अथवा उसे घर खाली करने के लिए कहा जाता है तो उसके लिए अन्य घर ही व्यवस्था की जाएगी तथा पति एवं ससुर द्वारा बहू का शादी शुदा सम्बन्ध तक सम्पूर्ण खर्च उठाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया
एक ससुर ने अपनी बहू को अपने खरीदे हुए घर से बेदखल करने के लिए ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर की थी। ट्रायल कोर्ट ने ससुर के पक्ष में फैसला सुनाया था। लेकिन हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और मामला दोबारा सुनवाई के लिए भेज दिया।
ससुर ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और ससुर की अर्जी खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (डीवी ऐक्ट) के तहत बहू को साझा घर में रहने का अधिकार है। यह अधिकार तभी लागू होता है जब बहू घरेलू हिंसा की शिकार हो।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि डीवी ऐक्ट के तहत दिया गया रहने का अधिकार सिविल सूट (संपत्ति के अधिकार का दावा) पर प्रतिबंध नहीं लगाता। डीवी ऐक्ट का कोई भी आदेश सिविल सूट में साक्ष्य बनेगा। सिविल सूट का फैसला साक्ष्य के तहत होगा।
इस फैसले से घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को एक बड़ी राहत मिली है। अब वे अपने ससुराल के घर में रहने के अधिकार के लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं।
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