IPC Section 20: यह भारत का एक ऑफिशियल क्रिमनल कोड है। जिसे भारतीय दंड सहिंता (Indian Penal Code) के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य है आपराधिक कानून के सभी मूल पहलुओं को शामिल करना। 1833 के चार्टर अधिनियम के अंतर्गत इस कोड को कानून आयोग की सिफारिशों के अनुसार तैयार किया गया है। यह भारत में ब्रिटिश साशन के दौर से स्थापित किया गया है। लेकिन यह पूर्ण रूप से उस समय लागू नहीं हुआ क्युकी सन 1940 के दशक में भारत में अपनी अदालते और कानून प्रणाली थी। लेकिन तब से लेकर आज तक इस कोड में कई बार संसोधन किया गया है। यह अन्य आपराधिक प्रवधानों के साथ कार्य कर रहा है।
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IPC Section 20 यहाँ जानिए, क्या है
आईपीएस सेक्शन 20 कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के विषय में जानकारी देता है। यह न्यायालय शब्द एक ऐसे न्यायधीश के बारे में दर्शाता है जो कानून द्वारा एक निकाय के रूप में न्यायिक तरीके से करने के लिए मजबूत किया गया है। अर्थात इस शब्द का अर्थ है की न्यायिक रूप से काम करने के लिए कानून को मजबूती प्रदान की गयी है। यह न्यायाधीशों का एक अंग है जो न्यायिक तरीके से काम करने हेतु सशक्त है।
उदाहरण हेतु 22 Regulation VII of the Madras Code, 1816 के अंतर्गत काम करने वाली एक पंचायत जिनके पास मुकदमो को देखने और उनके निर्णय करने से संबंधी शक्ति होती है जिसे कोर्ट ऑफ़ जस्टिस कहा जा सकता है।
आईपीसी की धारा 20
भारत में किसी भी नागरिकके द्वारा किये गए अपराध के लिए आईपीएस की धारा 20 दंड का प्रावधान करती है। इस एक्ट का मुख्य लक्ष्य है की भारत के लिए एक सामान्य दंड सहिंता प्रदान करना , इस सहिंता में सभी प्रकार के अपराधों को शामिल नहीं किया गया है। इसमें अभी कुछ अपराध इस संहिता से बाहर रह गए है। वह इसलिए क्युकी इन अपराधों का इरादा दंडात्मक परिणामों से छूट देने का नहीं था।
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